‘दुर्गामती’ टिपिकल हॉरर फिल्‍म नहीं है। इसे बनाने वालों ने भी इसे कॉन्सपिरेसी थ्रिलर कहा है। इस लिहाज से फिल्‍म में डराने और राज को राज रखने के साजो-सामान जमा तो किए गए हैं, पर उनके आपसी तालमेल में फॉर्मूला फि‍ल्मों के गणित इस्‍तेमाल हो गए हैं। इसके चलते डर जरा कम लगता है। रोमांच की परम अनुभूति कम हो पाती है। आज भी जब ‘राज’ या फिर ‘भूत’ और ‘भूल भुलैया’ देखने को मिलती है, तो डर और रोमांच की अनुभूति कम नहीं रहती। ‘दुर्गामती’ सैकंड हाफ में अपनी आभा, असर और पैनापन तीनों से भटक जाती है।

कहानी से भटकती रही फिल्म
बहरहाल, रानी दुर्गामती का जो महल फिल्‍म में खड़ा किया गया है या फिर जिस खूबी से विजुअल इफेक्ट क्रिएट किए गए हैं, वो उच्च‍ स्तरीय हैं। भारी भरकम दरवाजे और खिड़कियां हैं। वो अपनी मर्जी से खुलते और बंद होते हैं। बारिश की मौजूदगी से डर का समां बंधता है। तीन कम अक्ल हवलदार वाले किरदार हैं, जो अपनी हरकतों से हंसी पैदा करते हैं। इससे डर और सस्पेंस की एकरसता टूटती रहती है।

दुर्गामती के राज तो बड़े सम्मोहक हैं, पर जब उन पर से पर्दे हटने शुरू होते हैं तो वो बड़े बचकाने से लगने लगते हैं। यहां डायरेक्‍टर अशोक फिल्‍म पर से अपनी पकड़ खो देते हैं। कहानी और इसमें आने वाले मोड़ औसत रह जाते हैं। जिस ‘भागमती’ की यह रीमेक है, वहां संभवत: अनुष्का शेट्टी की लार्जर देन लाइफ शख्सियत के चलते फिल्‍म चर्चा में रही थी।

स्टार कास्ट का ऐसा रहा काम
इसके संवादों व मुद्दे में संजीदगी और गंभीरता है। आईएएस चंचल चौहान (भूमि पेडणेकर) और एक्टिविस्ट शक्ति (करण कपाड़िया) की प्रेम कहानी गांव वालों की जमीन बचाने के बैक ड्रॉप में है। उस पर ऊपरी तौर पर बेहद ईमानदार दिखने वाले नेता ईश्वर प्रसाद (अरशद वारसी) की नजर है। गांव वालों की जमीन तो वैसे भी तो इन दिनों पूरे भारत में चर्चा में है। किसान सड़कों पर हैं अपने हक के लिए दि‍ल्ली के सीमावर्ती इलाकों में।

भूमि, अरशद, करण कपाड़िया, माही, जीशू सेन गुप्‍ता और बाकी कलाकारों की अदायगी जरा ज्‍यादा सटल और फ्लैट रह गई है।

हर मोड़ पर प्रिडिक्टबल है कहानी
खैर कहानी में मोड़ आते हैं। चंचल चौहान पर शक्ति को मारने के आरोप हैं। वह जेल में बंद है। शुरूआती सीन में उसे ईश्वर प्रसाद का बेहद वफादार दिखाया जाता है। पर उसकी जांच के लिए बंगाली सीबीआई अफसर सताक्षी गांगुली (माही गांगुली) को लाया जाता है। चंचल से पूछताछ भूतिया महल में होती है। वहां दुर्गामती का साया क्‍या गुल खिलाता है, उससे कहानी आगे बढ़ती है।

घटनाक्रम बड़े प्रिडिक्टेबल और फॉर्मूला फि‍ल्मों वाले हैं। दर्शकों को समझते देर नहीं लगती कि आगे क्‍या होने को है। फिर भी फिल्‍म अपने विजुअल्स और कुछेक ट्विस्ट से बांधे रखती है।



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Movie Review Bhumi Pednekar starrer Durgamati the myth


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